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एक प्यासा कौवा

एक बार की बात है किसी जंगल में एक कौवा रहता था. एक दिन उससे बड़ी ज़ोर से प्यास लगी. वह पानी की तलाश में बहुत दूर तक उड़ता रहा, परंतु कहीं भी उससे पानी नही मिला. जब वह बहुत थक गया तो उससे आख़िर में एक घड़ा दिखाई दिया जिसमे बहुत थोड़ा-सा पानी था.
जब कौवे ने पानी पीना चाहा तो उसकी चोंच पानी तक नही जा सकी. उसने हर तरह से पानी पीने की कोशिश की, पर सब बेकार गयी. कौवा बेचैन हो उठा, तभी उसे एक उपाय सूझा. उसने आस-पास से कंकड़ एकत्रित करे और एक-एक करके अपनी चोंच से घड़े में तब तक डाले जब तक पानी ऊपर नहीं आ गया. फिर कौवे ने जी भर कर पानी पिया.
एस तरह कौवे ने अपनी मेहनत और सहनशक्ति से अपनी प्यास भुझाई और अपनी जान बचाई.


बुद्धिमान बंदर

किसी नदी के किनारे एक बहुत बड़ा पेड था. उस पेड पर एक बंदर रहता था. उस पेड पर बड़े मीठे फल लगते थे. बंदर उन्हे भर पेट ख़ाता और मौज उड़ाता. वह अकेले ही मज़े में दिन गुज़ार रहा था.

एक दिन एक मगर नदी में से उस पेड के नीचे आया. बंदर के पूछने पर उससने बताया की वो वहाँ खाने की तलाश में आया है. इस पर बंदर ने पेड से बहुत से मीठे फल तोड़ कर मगर को खाने के लिए दिए. इस तरह बंदर और मगर की दोस्ती हो गयी. अब मगर हर रोज वहाँ आता और दोनो मिल कर खूब फल खाते. बंदर भी एक दोस्त पा कर खुश था.

एक दिन बात-बात में मगर ने बंदर को बताया की उसकी एक पत्नी है जो नदी के उस पार उनके घर में रहती है. तब बंदर ने बहुत से मीठे फल मगर को उसकी पत्नी के लिए ले जाने के लिए दिए.

इस तरह मगर रोज जी भर कर फल ख़ाता और अपनी पत्नी के लिए भी ले कर जात्ता. मगर की पत्नी को फल खाना अच्छा लगता पर पति का देर से घर लौटना पसंद नही था. एक दिन मगर की पत्नी ने मगर से कहा की अगर बंदर रोज-रोज इतने मीठे फल ख़ाता है तो उसका कलेजा कितना मीठा होगा मैं उसका कलेजा खाऊंगी. मगर ने उसे बहुत समझाया पर वह ना मानी.

मगरमच्छ दावत के बहाने बंदर को अपनी पीठ पर बैठा कर अपने घर लाने लगा. नदी के बीच में उसने बंदर को अपनी पत्नी की कलेजे वाली बात बता दी. इस पर बंदर ने कहा की वो अपना कलेजा पैड पर छोड़ आया है.वह उससे हिफ़ाज़त के लिए पेड पर रखता है. इसलिए उन्हे वापिस जाकर कलेजा लाना पड़ेगा. मगर बंदर को वापिस पेड के पास ले गया. बंदर छलाँग मारकर पेड पर चड़ गया. उसने हंस कर कहा - "जाओ मूर्ख राजा, जाओ घर जाओ और अपनी पत्नी से कहना की तुम दुनिया के सब से बड़े मूर्ख हो. भला कोई भी अपना कलेजा निकल कर अलग रख सकता है."

बंदर की समझदारी से हमें पत्ता चलता है की मुसीबत के वक़्त हमें कभी धैर्य नहीं खोना चाहिए.